SC: ‘बारहों महीने काम के लिए रखे श्रमिकों को संविदा कर्मचारी नहीं मान सकते’, अदालत की टिप्पणी
महानदी कोलफील्ड्स ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल के पास श्रमिकों को स्थायी दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है। क्योंकि अपीलकर्ता और प्रतिवादी/श्रमिक संघ के बीच हुआ समझौता सभी पक्षों पर बाध्यकारी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बारहों महीने या स्थायी प्रकृति के काम करने के लिए रखे गए श्रमिकों को सिर्फ नियमितीकरण के लाभ से वंचित करने के लिए अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970 के तहत अनुबंध श्रमिकों के रूप में नहीं माना जा सकता है। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ कोल इंडिया की सहायक कंपनी महानदी कोलफील्ड्स के 32 में से उन 13 श्रमिकों को नियमित करने का आदेश दिया जिन्हें अनुबंध श्रमिक मानकर नियमित नहीं किया गया था।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा ओर जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा, स्थायी या बारहमासी प्रकृति का कार्य किसी संविदा कर्मचारी से नहीं कराया जा सकता है। इसे नियमित-स्थायी कर्मचारी को ही करना चाहिए। यह मामला कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी महानदी कोलफील्ड्स की ओर से नियोजित कुल 32 श्रमिकों में से 13 श्रमिकों के गैर-नियमितीकरण से जुड़ा है। इन्हें बारहमासी कार्य करते समय अनुबंध श्रमिक माना गया था। कंपनी ने सिर्फ 19 श्रमिकों को नियमित किया था। 13 श्रमिकों को इस आधार पर नियमित करने से इन्कार कर दिया गया था कि वे जो काम करते हैं वह आकस्मिक है और निरंतर-बारहमासी नहीं, जिससे वे अनुबंध श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन अधिनियम, 1970) के तहत नियमित होने के लिए अयोग्य हो गए।
केंद्र के हस्तक्षेप के बाद, मामला केंद्रीय औद्योगिक विवाद न्यायाधिकरण को भेजा गया। ट्रिब्यूनल ने भी 13 श्रमिकों के काम को नियमित हुए 19 श्रमिकों के समान माना। इसलिए उन्हें अन्य 19 श्रमिकों को प्रदान की गई बकाया मजदूरी और नौकरियों के नियमितीकरण का हकदार बताया। ट्रिब्यूनल ने माना कि बंकर के नीचे, रेलवे साइडिंग में गंदगी हटाने का काम और 13 श्रमिकों की ओर से (बंकर में) ढलानों का संचालन नियमित और बारहमासी प्रकृति का है। हाईकोर्ट ने भी ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखा था जिसके बाद महानदी कोलफील्ड्स ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।